सोमवार, 30 दिसंबर 2013

Bye Bye 2013- Welcome 2014

मेरी  हाल की संगीत प्रस्तुति 

इस समय रात्रि के 3 बज चुके हैं तो मैं जयादा लम्बा नहीं खीचूंगा   बस वर्ष के इस अंतिम दिवस कि वेला पर जाते हुए वर्ष को अपना सलाम व् आने वाले 2014 को स्वागत करता हूँ । अपने सभी मित्रों व हितैषियों को नव वर्ष बहुत शुभ होगा ऐसी मेरी शुभेच्छा है । 

इसी महीने की 28 तारीख़ को मैने स्वयं कि लिखी कविता को लयबद्ध करने के उपरांत उसे अपनी आवाज़ व साज़ के साथ रिकॉर्डिंग करके तथा कुछ मिक्सिंग वगैहरा का प्रयोग करते हुए एक 100 प्रतिशत  कंटेंट यू ट्यूब पर अपलोड किया है जिसका लिंक नीचे लिखा है :


यदि पाठकगण इसको सुन कर अपने फ्रैंक टिपण्णी देंगे तो मुझे हर्ष होगा व मुझे आगे सुधार लाने 
व कार्य की प्रेरणा भी मिलेगी । 

शुभ -रात्रि !!

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

Bhatkhande Music Institute ( Deemed University ): My Linkages

भातखंडे संगीत संस्थान ( डीम्ड विश्वविद्यालय ): मेरे सम्बंध 

मैंने अपने पिछले पोस्ट में इस संगीत विश्वविद्यालय का ज़िक्र करना शुरू किया था । हिंदुस्तानी संगीत के क्षेत्र में कार्यरत सभी कलाकार एवं अन्य संगीत प्रेमी इस से भली भांति परिचित हैं । मज़े की बात ये है कि जहाँ संगीत के अन्य विद्यालयों जिनका स्तर भातखंडे संगीत संसथान से बहुत कम का रहा होगा,वहाँ तो मैं एक विद्यार्थी के तौर पर जाता रहा था ,पर यहाँ पर मैं एक कार्यकर्ता के पद पर पहुंचा । हालाँकि यहाँ काम करते वक्त अपनी जिम्मेदारियों को निभाते निभाते ,मैं स्वयं को संगीत का विद्यार्थी भी मानता रहा । चूँकि पिछले संस्थाओं के मुकाबले यहाँ का स्तर काफ़ी उच्च कोटि का माना जाता है,अतः मैंने इस संस्था के किसी गुरुजन से अपनी शिक्षार्थी प्रवृत्ति को झिझक कि वज़ह से प्रकट नहीं होने दिया । बस थोड़ा बहुत संगीत ज्ञान ,दुसरे कलाकारों के कार्यक्रमों को सुनकर मिलता था,उसे ग्रहण व आत्मसात करने की कोशिश करता रहता । 

मैंने अपनी संगीत की शिक्षा टुकड़ो में कहाँ कहाँ से जुटाई ,कुछ का ज़िक्र पिछले पोस्ट में किया ही है,पर जो थोड़े अन्य रह गये हैं उन्हें भी लिखता चलूँ । कॉलेज तक का विवरण मैंने पीछे बताया था कि किस तरह ग़जलों से होता हुआ उस्ताद मेहँदी हसन खान साहिब व उस्ताद गुलाम अली खान साहिब की गज़लों से मुझे शास्त्रीय संगीत कि तरफ़ बढ़ने कि आवश्यकता महसूस हुई । पर ये शुरुआत हुई उदयपुर ( राजस्थान ) से । वहाँ बैंक में अधिकारी के पद पर कार्यरत था,पर सायंकाल के समय अशोक नगर में स्थित एक छोटे से संगीत विद्यालय से मैंने गायन में शास्त्रीय संगीत सीखना प्रारम्भ किया ।  यहाँ मेरी प्रथम गायन-गुरु श्रीमती बाशोभि भटनागर थीं जिनसे लगभग एक वर्ष मैंने सीखा । सन 1983 में हम अशोक नगर से हिरणमगरी सेक्टर 11 में शिफ्ट हो गए थे सो वहाँ से छोड़ना पड़ा पर यहाँ पास में ही मीरा कला संगीत विद्यालय था सो वहाँ से भी आगे सीखना चालू किया । यहाँ पर मेरे गुरु थे श्री राम नारायण ,जिनसे लगभग डेढ़ दो साल मैंने सीखा । इसके बाद बैंक कि व्यस्तताओं के चलते कुछ वर्ष का अंतराल हुआ ,हालाँकि मेरा स्वयं से रियाज़ हमेशा ही चालू रहा । पुनः 1989 के पास जब मेरी पोस्टिंग नई दिल्ली हुई ,तब मंडी हाउस स्थित श्री राम सेण्टर में मैंने पुनः गायन-शिक्षा लेनी प्रारम्भ करी । यहाँ लगभग मैंने दो वर्ष तक सिखा । 

बस इसके बाद कहीं अन्य से सिखने का अवसर ही नहीं मिला । लेकिन दिल में हमेशा ये बना ही रहा कि अभी तो सिखने कि ये यात्रा बहुत लम्बी है । इसी वजह से जब भातखंडे में काम करने का अवसर मिले तो मैंने फौरन स्वीकार किय। 

और हाँ इसके बारे में बातें तो बहुत सारी हैं पर उन्हें बीच बीच में लिखता रहूँगा । 

जो मुख्य बात आज यहाँ भातखंडे के बारे में लिखे जाने कि है,सो ये कि वहाँ सन 2009 में दो महीने मैंने एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकारी के तौर पर जो दायित्व निर्वाह किया था ,उसमें से एक महीने का पारिश्रमिक संगीत संस्था को मुझे देना था ,सो उसका चैक आज मुझे दे दिया गया ।

 हालाँकि ये पारिश्रमिक 4 साल के अंतराल के बाद प्राप्त हुआ पर मुझे गर्व इस बात का ज्यादा है कि मैं संगीत की इस महान संस्था ,जहाँ मेरी हैसियत संगीत के एक तुच्छ विद्यार्थी कि ही सी होगी,वहाँ मैं  वर्त्तमान में कार्यरत उच्च कोटि के संगीत व् नृत्य  के प्रसिद्ध गुरुजनों के साथ एडमिनिस्ट्रेटिव-अधिकारी बन कर सेवा का सौभाग्य प्राप्त कर पाया । 

शेष अगले पोस्ट तक !!

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

Bhatkhande Music Institute ( Deemed Univrsity ) Lucknow : My Linkage

संगीत की महान संस्था से मेरा जुड़ाव :

भातखण्डे संगीत संस्था ,लखनऊ ,उत्तर प्रदेश,भारत की एक अत्यंत प्रसिद्ध एवं सम्मानित हिंदुस्तानी संगीत सिखाने का विध्यालय 1926 से रहा जिसे वर्ष 2002 में यूनिवर्सिटी का दरजा प्राप्त हुआ । इस संस्था से बहुत से विश्वविख्यात कलाकार हुए हैं जिनका नाम संगीत के क्षेत्र में बहुत सम्मान से लिया जाता रहा है । आज इस विश्वविध्यालय से पढ़ कर निकले अनेक छात्र हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत से सम्बंधित विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं । 

अपने पिछले पोस्ट्स में मैंने अपनी संगीत यात्रा के उस समय का ज़िक्र किया जब मैंने स्वयं से ही गाने-बजाने का शौक़ छोटी सी उम्र में कर लिया था । बग़ैर किसी दिशादर्शन के व स्वयं के ढूंढे रास्तों से होता हुआ मैं संगीत का रियाज़ करता रहा । ख़ुद से ही दिल्ली के बाल-भवन से जुड़ा तो वहाँ बोंगो ,सितार सीखा पर कुछ समय ही । फ़िर कुछ वर्ष बाद दिल्ली में ही कनाट -सर्कस में स्थित गन्धर्व विद्यालय में लगभग दो तीन महीने हवाईयन गिटार बजाना सीखा । एकाध महिने ही मैंने गीत भजन गाने का मार्गदर्शन दिल्ली रेडियो के उस वक्त के "बाल-कार्यक्रम" के इंचार्ज के घर पर जाकर भी सीखा । फिर कई लम्बे अर्से तक में ख़ुद के रियाज़ व रेडियो ,टीवी या टेप-रिकॉर्डर पर बजने वाले संगीत को सुन सुन कर ज्ञान अर्जित करता रहा । तब मैं क्या ग़लत या क्या सही गाता-बजाता था उसका कोई आंकलन नहीं था क्यूंकि मैं स्वयं का प्रदर्शन भी बहुत कम ही करता था । हाँ ,ग्यारहवीं कक्षा तक स्कूल में होने वाले प्रार्थना के लिए मुझे ही चुना जाता था पर चूँकि उस समय स्कूलों में फ़िल्मी गाने नहीं चलते थे सो वो अवसर भी नहीं मिलता था कि हम औरों के सामने गीत वगेरह गा संके । 

१९७३ में जब मैंने सैंट-स्टीफन्स दिल्ली में दाखिला लिया तो वहाँ के माहौल से प्रभावित होकर अंग्रेजी गानों कि तरफ भी झुकाव बना ,पर सम्भवता 1974 में स्टीफन्स की तरफ़ से दिल्ली के दुसरे कालेजों में गज़ल प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने कि वज़ह से में धीरे -धीरे ग़ज़लों के क्षेत्र में प्रविष्ठ हो गया । हल्की-फ़ुल्की ग़ज़लों से शुरू हुई मेरी ये संगीत यात्रा मुझे स्वतः ही ग़ज़ल-सम्राट मेहँदी हसन खान साहिब व बाद में जनाब गुलाम अली के गायन कि तरफ़ ले चला । अब ये तो हर कोई जानता है कि इन दोनों उस्तादों की ग़ज़लें बिना शास्त्रीय संगीत के इल्म के होना कठिन है\। 

तो ग़ज़लों के इस इम्तहान ने मुझे ये प्रेरित किया कि मैं शास्त्रीय गाने की शिक्षा लूं ताकि उनकी ग़ज़लों को कुछ ढंग से गा सकूँ । 



क्रमशः। ....  

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

Back On Regular Timings !!

लो  फ़िर  से   मैं  शुरु  हुआ  : 6 दिसम्बर  2013 

पाठक इस शीर्षक से फौरन समझ जायेंगे कि ऐसा मैनें क्यूँकर लिखा जब उन्हें   पता चलेगा कि मेरा लैपटॉप पुनः ठीक से चालू हो चला है । इसके अतिरिक्त रिलाइन्स  का इंटरनेट डोंगल भी सही स्पीड पर काम करने लगा है । पिछले महिनों से शुरू हुई किसी अनजानी वज़ह या वायरस ने अंततः लैपटॉप की हार्डडिस्क को क्रैश कर दिया था और मुझे नई डिस्क खरीदने पर विवश होना पड़ा । 

अब उम्मीद है कि कुछ ठीक ठाक मामला चलता रहेगा । 

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

Vocal Music Restart

मेरा गायन रियाज़

पिछले कई महिनों से ना केवल मेरी संगीत साधना से गायकी अंग बिछुड़ सा गया था ,बल्कि उसके साथ हारमोनियम बजाना   भी बहुत दूर हो चला था। जबकि उससे पूर्व इन दोनों का साथ रोज़ाना कई घंटो का हुआ करता था । पर इस दरमियाँ मेरे संगीत का हमसफ़र मेरा स्पेनिश गिटार बना । पर पिछले दो दिनों से गायकी का रियाज़ व हारमोनियम की संगत का लुत्फ़ फिर से शरू हुआ है । 
कई महिनों के बाद भी हालाँकि मेरी उँगलियाँ हारमोनियम पर आराम से चल रहीं थीं ,पर लगता है कि गले से कुछ सुर दूर हो चलें हैं जो कि नितांत स्वाभाविक है । ऐसा लगता है कि उम्र भी गले पर डेरा डाले सुरों को उनके निश्चित स्थान से हिला चुकी है । तो क्या मेरी सुर-साधना की इतिश्री होने का वक्त शुरू हो चूका है ?

ये मैं आपको कुछ आगे के ब्लॉग्स में ही बता पाऊंगा । 
तो तब तक के लिए - शुभ दिन !

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

कई दिनों बाद  फिर से 


पिछले  कई हफ़्तों से कोशिश चल रही थी के किसी तरह मेरे इस हिंदी ब्लॉग में चल रही फोंट्स की समस्या किसी तरह सुलझ जाये और पिछले शुरूआती पोस्ट्स में फोंट्स के साइज़ टाइप बैकग्राउंड रंग आदि में आई गड़बड़ी को दुरुस्त कर पाऊं । पर ये एक लम्बी प्रक्रिया है और समय काफ़ी लगता है । घंटों की मेहनत के बाद कुछ लाइन्स ही सही से लिख सका हूँ पर फ़िर भी ये कार्य संतोषजनक नहीं हुआ । समझ नहीं आता कि ब्लागस्पाट पर हिंदी में सीधे टाइप करके लिख सकने की सुविधा इंग्लिश की तरह क्यूँकर नहीं संभव है । पिछले कई पोस्ट्स अब भी फोंट्स प्रॉब्लम से ग्रसित रहने की वजह से हर किसी ब्राउज़र पर पढ़े नहीं जा सकेंगे इसका अफसोस है । 
 

रविवार, 28 जुलाई 2013

COME WITH ME TO DELHI-6( INDIA) :MY MUSICAL INITIATIONS

जुलाई २8, 2013 ( 5 .1 4 PM ) भारत 

बहुत दिनों के उपरांत ये ब्लॉग्गिंग (हिन्दी ) जारी रखने  का क्रम शुरू हो चला है \ पूर्व पोस्ट्स में अपने बचपन के दोरान संगीत में इधर उधर से मिले टिप्स का जिक्र कर रहा था ,जो की अभी पूर्ण नहीं हुए हैं \ब्लॉग्गिंग के दोरान आई अडचनों का भी मेने   जिक्र किया ही है कि टेक्निकल वजह से किस तरह रूकावटें आ रहीं थीं \पर अब लगता है कि स्टाइल में परिवर्तन को आत्मसात करने के उपरांत हिंदी कन्वर्शन टूल द्वारा सीधे टाइप करने  से भी काम बन रहा है\ सो संभवतः अब इसे जारी रखने में दिक्कत नहीं आनी चाहिए \

सन 1960 के आसपास से शुरू हुआ मेरा ये संगीत सफर उम्र के 56 बरस पूर्ण होने के बावजूद अभी  भी जारी है \तिस पर तुर्रा ये कि ना तो कोई साहिल दिखायी पड़ता है और न ही लगता है कि संगीत में कुछ सुरों के फासले तय कर पाया हूँ \ जहाँ से बचपन में सफर पर निकला था लगता है मानो की आज भी वहीँ खड़ा हुआ हूँ \यदि सच कहूं तो लगता है कि अब गायन के क्षेत्र में सुरों की पकड़ कमतर हो चली है\

और गायन  की कला में ये बहुत ही जरूरी है कि ना केवल रोंज ही रियाज यानि प्रक्टिस चले बल्कि उसका स्तर दिन ब दिन उच्च स्तर को प्राप्त होता रहे \ये कला अन्य  कलाओं  से ज्यादा व लगातार महनत की मांग करता है \इधर  पिछले दो सालों से मेरा रियाज़ गायन में कम हो गया है और गिटार बजाने में निरंतर  बदा है जिससे गाते वक्त सुरों पर कण्ट्रोल पहले से गिर चुका है \

वेसे बहुत जल्दी यु टियूब पर अपने चैनल पर मैं अपने स्वयं के गाये गाने अपलोड करने वाला हूँ जिसकी विडियो लिंक इस ब्लॉग पर भी बताऊंगा ताकि उसे सुनकर पाठक गण मेरी पिछले पैरा में लिखी बातों को स्वयं से तौल सकें\

तो तब तक के लिए आज्ञा देवें \
नमस्कार \

  

गुरुवार, 27 जून 2013

Temporary Absence From Blogging Scene

 प्रयास जून २7 , २013 ( ११  रात्री )

पिछले  कई  हफ्तों से में इन्टरनेट    माध्यम  से जुड़ नहीं पा रहा हूँ । इसका मुख्य कारण मेरे लैपटॉप का खराब पड़ जाना है । ऐसा लगता है कि ये खराबी नेट से मिले किसी अनजान वायरस की देन है । फिलहाल जो थोड़ा बहुत बामुश्किल कर पा रहा हूँ वो किसी और के लैपटॉप को मांग कर काम निकाल रहां हूँ । तिस पर एयरटेल का ये ३ जी कनेक्शन दुखी करे हुए है जो की १ जी से भी कम की स्पीड दे रहा है । समझ नहीं आता कि ये अपने साथ ही हो रहा है या कि और यूज़र्स भी इस से परेशान हैं । 

अपने पिछले पोस्ट में मैंने ब्लॉगर द्वारा हिन्दीकरण व फोन्ट समस्या का जिक्र इस उद्येश से किया था कि जहाँ एक तरफ पढने वाले समझ सकेंगे कि ये सब टेक्नोलॉजी की वजह से है , वहीँ दूसरी उम्मीद थी कि यदि भूले-भटके ब्लॉगर चलाने वाले इसे पढ़ें तो आवश्यक सुधार कर लेवें । 

इन सब वजहो से बहुत दिक्कतें पेश आ रहीं हैं जिससे  हिंदी ब्लॉग्गिंग में वो मज़ा व सुविधा नहीं मिल रही  है जो की मेरे दो इंग्लिश ब्लोग्स में फिलहाल मिल रहा है । 

खेर !

बुधवार, 22 मई 2013

The font problem on my page

  मेरी आपकी बातचीत में टाइपिंग फोंट्स की अड़चन                                   23 मई 2013


मैंने ये ब्लाग हिंदी भाषा में लिखना प्रारंभ किया तो है ,पर अब तक में दूसरी फाईल पर हिंदी में टाईप करने के बाद उसे यंहां पेस्ट कर रहा था ,परंतु ऐसा लग रहा है कि पढने वालों के ब्राऊसर पर मेरे दवारा लिखे शब्द हिंदी फोंट पर नहीं बल्कि अंग्रेज़ी के फोंट पर ही दिखते हैं और उसको कुछ समझ नहीं आता | ये बात मुझे तब से समझ आई जब मैंने अपना ब्लॉग किसी और के कंप्यूटर पर जाकर पढ़ा | इससे ज़ाहिर है की मेरी बात हिंदी भाषी पाठकों तक पहुँच ही नहीं रही थी । अब जाकर मुझे समझ आया की यह किस तरह करें की पाठकों को हिंदी में ही मेरा ब्लॉग पढ़ने को मिले । 

चूँकि मुझे इंग्लिश टाइपिंग के साथ साथ हिंदी में सीधा ही टाइप करने का अभ्यास है तो उतनी मुश्किल नहीं थी ,बस गति धीमी रहती थी । पर ब्लॉगर पर रोमन में टाइप करते हुए इसका हिंदीकरण करने वाली सुविधा ने ये झंझट भी दूर कर दिय । 

ये पोस्ट मैं मात्र हिंदी फोंटों का सही प्रदर्शन देखने के लिए कर रहा हूँ । आशा है की पाठक इस पोस्ट के उद्येश को समझते हुए अगले पोस्ट तक के लिये क्षमा करेंगे । 

शुभ -रात्रि  !!

मंगलवार, 14 मई 2013

My Music Initiation Five Decades Ago




सन 1960-70 के दशक की देहली - 6  से मेरी संगीत यात्रा  


मैंने अपने पिछले पोस्ट के शीर्षक को नाम दिया था मेरे संगीत गुरू जन पर जिन लोगों का  उसमें ज़िक्र किया है  उनसे मैंने सीधे -सीधे  संगीत ज्ञान तो नहीं लिया था पर उनसे मुझे संगीत क्या व कैसे होता है इसकी राह अवश्य ही मिली होगी ऐसा आज मेरा  मानना है । पर हाँ  अपने इस पिछले पोस्ट में ऐसे ही कुछ अन्य प्रेरकों का वर्णन मुझसे छूट गया था जिसका ध्यान आज आया तो सोचा कि इस पोस्ट के माध्यम से वो भी बतलाता चलूँ जिनकी उपस्थिति दिल्ली 6 के उन रिहायशी इलाकों में तब भी थी जब में वहां पैदा हुआ था आज भी है व आने वाले कई सदियों तक रहेगी ही, और जिनके साथ संगीत बहुत हद तक जुड़ा  हुआ है । 

ये प्रेरक वो धार्मिक जलूस  हैं जो की हर वर्ष पुरानी  दिल्ली की सडकों पर गुजरतें  हैं तथा जिन्हें देखने के लिए वहां पर रहने वाला हर बच्चा अपने घर से दौड़ा -दौड़ा सड़क तक चला आता है चाहे उसके घर वाले साथ हों या नहीं ।  ये थे  सिखों के गुरुओं के जन्मदिन आदि पर निकलने वाले जलूस तथा रामलीला की सवारियों  के निकलने के साथ मशहूर बैंड शेहनाई व ढोल -नगाडों का अलग अलग धुनों व तालों का बजाते हुए गुजरना । इसी तरह मोहर्रम आदि  पर रंग -बिरंगे चमकते ताजियों  के साथ ढोल-नगाड़ों का विभिन्न तालों का बजना जिनकी आवाज शारीर में एक रोमांच सा भर देती थी व इसी प्रकार के अन्य धार्मिक आयोजन जिनके साथ कुछ न कुछ संगीत जुड़ा रहता ही था । 

अब यदि कोई ऐसे संगीतमय माहौल में पैदा व पला-बड़ा हुआ हो तो भला क्या ये संभव  है की सुर व ताल उससे अछुतें रह जाएँ !! 



सोमवार, 13 मई 2013

My Music Initiation : Five Decades Ago !



मेरे  संगीत गुरु जन 


मेरी संगीत यात्रा उम्र के उस पड़ाव से ही प्रारंभ हो गई थी जब से मैंने होश संभालना शुरू किया था । ये ध्यान  देने योग्य बात है कि मेरे परिवार का मुझसे पूर्व संगीत कला से कोई रिश्ता नहीं था । मेरे पिताश्री से पहले के पूर्वजों का पुश्तैनी कार्य  शिल्पकारी का था जो कि मेरे प्रातःस्मरणीय दादाजी स्व 0 श्री मदन राम जी के साथ  तक रहा पर मेरे पिताश्री स्व 0 श्री कृष्ण लाल जी ने पढाई पर ही ध्यान दिया और पुरानी  देहली 6 में कुछ परिचितों की सेवादारी निभाने के साथ साथ 1940-50 के दशक में मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास की । उन्हें उस समय रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया से तुरंत नौकरी का आफर आ गया था परन्तु उन्होंने परिचितों के ग़लत सुझावों  के चलते उसे ज्वाइन नहीं किया । तदुपरांत उन्होंने अन्य कई जगह काम किया और अंततः सी .एस .आई .आर ( रफ़ी मार्ग , नई देहली ) में पक्की सरकारी पद से पेंशन पाकर   सेवानिवृत हुए । मेरी माँ स्व 0 श्रीमति गंगा देवी एक गृहस्थन बन मेरे पिताजी के साथ हाथ बटाने में लगीं रहीं सो उनका भी संगीत से दूर दूर तक कोई रिश्ता , स्नेह या लगाव नहीं था । सो  संगीत मुझे विरासतन नहीं अपितु महज अन्य बाहरी लोगों से देखा -सुनी  में शौक़ की तरह बचपन से ही चिपक सा गया था । 

हांलाकि  बचपन में मेरे संगीत के इस जबरदस्त झुकाव को ना तो घर वालों की तरफ से कोई रोक -टोक मिली और ना ही किसी तरह का कोई प्रोत्साहन । जितना मुझे संगीत अच्छा लगता था उतना ही म़ें  पढ़ाई में भी डूबा रहता था । यही कारण रहा कि मैं पहली कक्षा से लेकर ग्याहरवीं तक लगातार अपने विद्यालय का सर्वोच्च छात्र रहा और सी  बी एस सी देहली की  ग्याहरवीं  कक्षा के वार्षिक परिणामों में अपने इस विद्यालय ( आत्मा राम सनातन धर्म हायर सेकेंडरी स्कूल अजमेरी -गेट देह्ली - 6 ) में इस स्कूल के पिछले कई वर्षों के बोर्ड परीक्षाओं का भी रिकॉर्ड तोड़ते हुए मेरिट -बोर्ड में नाम दर्ज कराया था । ये बात अलग है   कि  उस समय ना ही  उस स्कूल के किसी अध्यापक ने और ना ही प्रधानाध्यापक ने मुझे अकेले में या अन्य के समक्ष इस उपलब्धि पर कोई प्रशस्ति पत्र  या मात्र बधाई ही दी या कुछ ऐसी ही   कुछ बात कही । आज जबकि लोग ऐसे परिणामों पर आसमान उठा देतें हैं मुझे याद नहीं कि  मेरे पिताश्री के अतिरिक्त किसी और ने मेरा उत्साहवर्धन किया था भी या  नहीं । पिताजी ने उस वक्त मुझे इनाम स्वरुप एक कलाई घड़ी दी थी जिससे मुझे लगा था कि मैंने कुछ तो प्रशंसात्मक कार्य किया ही था । स्कूल  के  ऑनर-बोर्ड  पर मेरा  नाम  था  और  मैंने  ये स्थान  प्राप्त  किया  था  ये  बात  भी  मुझे बहुत  दिन  बाद पता  चली  ।

बहरहाल  उस  समय के  कई  व्यक्ति  थे  शायद जिनसे प्रभावित होकर ही मैने भी नक़ल करते हुए अनजाने में संगीत का सिलसिला शुरू किया होगा और कालान्तर में ये मेरा मुख्य शौक़ बन गया । उस समय हमारा किराये का मकान हुआ करता था जो की पुरानी देहली की उन गलियों में था जहाँ से कुछ गली दूर ही किसी जमाने में उर्दू जुबां के मशहूर शायर उस्ताद मिर्जा ग़ालिब रहा करते थे । आज तो उस गली के ठीक सामने देहली रेलवे मेट्रो का चावड़ी बाज़ार स्टेशन है । उस समय हमारी गली में चार बाहरी शख्सियतें ऐसी थीं जो लगभग रोजाना अपने स्वयं के शौक़ या रोज़ी के चलते,संगीत से मेरा प्रतक्ष्य सामना करवाते थे । सन 1950 की उस समय की देहली का माहौल आज के देहली से बिल्कुल अलग था और यदि समय के तराजू पर समीक्षा करूँ तो वो आज से बहुत बेहतर भी था । उस दौर के वाकयात रहने वाले लोग उनके तौर -तरीक़े उन सब का हमसे पारस्परिक व्यव्हार हमारी आज गुज़र रही फ्लैट-संस्कृति से बिल्कुल अलग थी । उन सब का ज़िक्र यहाँ करने को दिल कह रहा है,पर वो सब फ़िर कभी किसी और पोस्ट में !

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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

Those Were The Days My Friend ....My Treasure



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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

Only One Song !



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