सन 1960-70 के दशक की देहली - 6 से मेरी संगीत यात्रा
मैंने अपने पिछले पोस्ट के शीर्षक को नाम दिया था मेरे संगीत गुरू जन पर जिन लोगों का उसमें ज़िक्र किया है उनसे मैंने सीधे -सीधे संगीत ज्ञान तो नहीं लिया था पर उनसे मुझे संगीत क्या व कैसे होता है इसकी राह अवश्य ही मिली होगी ऐसा आज मेरा मानना है । पर हाँ अपने इस पिछले पोस्ट में ऐसे ही कुछ अन्य प्रेरकों का वर्णन मुझसे छूट गया था जिसका ध्यान आज आया तो सोचा कि इस पोस्ट के माध्यम से वो भी बतलाता चलूँ जिनकी उपस्थिति दिल्ली 6 के उन रिहायशी इलाकों में तब भी थी जब में वहां पैदा हुआ था आज भी है व आने वाले कई सदियों तक रहेगी ही, और जिनके साथ संगीत बहुत हद तक जुड़ा हुआ है ।
ये प्रेरक वो धार्मिक जलूस हैं जो की हर वर्ष पुरानी दिल्ली की सडकों पर गुजरतें हैं तथा जिन्हें देखने के लिए वहां पर रहने वाला हर बच्चा अपने घर से दौड़ा -दौड़ा सड़क तक चला आता है चाहे उसके घर वाले साथ हों या नहीं । ये थे सिखों के गुरुओं के जन्मदिन आदि पर निकलने वाले जलूस तथा रामलीला की सवारियों के निकलने के साथ मशहूर बैंड शेहनाई व ढोल -नगाडों का अलग अलग धुनों व तालों का बजाते हुए गुजरना । इसी तरह मोहर्रम आदि पर रंग -बिरंगे चमकते ताजियों के साथ ढोल-नगाड़ों का विभिन्न तालों का बजना जिनकी आवाज शारीर में एक रोमांच सा भर देती थी व इसी प्रकार के अन्य धार्मिक आयोजन जिनके साथ कुछ न कुछ संगीत जुड़ा रहता ही था ।
अब यदि कोई ऐसे संगीतमय माहौल में पैदा व पला-बड़ा हुआ हो तो भला क्या ये संभव है की सुर व ताल उससे अछुतें रह जाएँ !!
अब यदि कोई ऐसे संगीतमय माहौल में पैदा व पला-बड़ा हुआ हो तो भला क्या ये संभव है की सुर व ताल उससे अछुतें रह जाएँ !!
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