रविवार, 2 फ़रवरी 2014

Crucial Changes In Life-Journey

जीवन-संगीत के नये आयाम  ( फ़रवरी 3 , 2014 रात्रि 1.36 )

दिनांक 24 जनवरी की शाम एक नये संगीत का जन्म हुआ | जब भी किसी नयी चीज़ की रचना होती है तो उससे पूर्व का समय अत्यंत कष्ट भरा रहता है तथा रचित नवजात गीत के लिए शैशव कालीन समय भी अनिश्चितता व् जीवंतता का गाम्भीर्य  बनाये  रखता है । नई रचना के बीजों के उर्वरक धरातल पर पड़ने के वक्त ,तदन्तर बीज के अंकुरित होने पर धात्री-चेतना के पटल पर पड़ने वाली कष्टकारी रेखाओं का राक्तिक-अंकन होना ऐसी सृजनत्मकता पर होना स्वाभाविक है | 

गीत अभी अपनी शैशव-अवस्था से गुजर रहा है । देखते  हैं भविष्य ने अपने गर्भ में इस के लिए क्या छुपा रखा है । 

फ़िर पुनः !!


सोमवार, 30 दिसंबर 2013

Bye Bye 2013- Welcome 2014

मेरी  हाल की संगीत प्रस्तुति 

इस समय रात्रि के 3 बज चुके हैं तो मैं जयादा लम्बा नहीं खीचूंगा   बस वर्ष के इस अंतिम दिवस कि वेला पर जाते हुए वर्ष को अपना सलाम व् आने वाले 2014 को स्वागत करता हूँ । अपने सभी मित्रों व हितैषियों को नव वर्ष बहुत शुभ होगा ऐसी मेरी शुभेच्छा है । 

इसी महीने की 28 तारीख़ को मैने स्वयं कि लिखी कविता को लयबद्ध करने के उपरांत उसे अपनी आवाज़ व साज़ के साथ रिकॉर्डिंग करके तथा कुछ मिक्सिंग वगैहरा का प्रयोग करते हुए एक 100 प्रतिशत  कंटेंट यू ट्यूब पर अपलोड किया है जिसका लिंक नीचे लिखा है :


यदि पाठकगण इसको सुन कर अपने फ्रैंक टिपण्णी देंगे तो मुझे हर्ष होगा व मुझे आगे सुधार लाने 
व कार्य की प्रेरणा भी मिलेगी । 

शुभ -रात्रि !!

गुरुवार, 12 दिसंबर 2013

Bhatkhande Music Institute ( Deemed University ): My Linkages

भातखंडे संगीत संस्थान ( डीम्ड विश्वविद्यालय ): मेरे सम्बंध 

मैंने अपने पिछले पोस्ट में इस संगीत विश्वविद्यालय का ज़िक्र करना शुरू किया था । हिंदुस्तानी संगीत के क्षेत्र में कार्यरत सभी कलाकार एवं अन्य संगीत प्रेमी इस से भली भांति परिचित हैं । मज़े की बात ये है कि जहाँ संगीत के अन्य विद्यालयों जिनका स्तर भातखंडे संगीत संसथान से बहुत कम का रहा होगा,वहाँ तो मैं एक विद्यार्थी के तौर पर जाता रहा था ,पर यहाँ पर मैं एक कार्यकर्ता के पद पर पहुंचा । हालाँकि यहाँ काम करते वक्त अपनी जिम्मेदारियों को निभाते निभाते ,मैं स्वयं को संगीत का विद्यार्थी भी मानता रहा । चूँकि पिछले संस्थाओं के मुकाबले यहाँ का स्तर काफ़ी उच्च कोटि का माना जाता है,अतः मैंने इस संस्था के किसी गुरुजन से अपनी शिक्षार्थी प्रवृत्ति को झिझक कि वज़ह से प्रकट नहीं होने दिया । बस थोड़ा बहुत संगीत ज्ञान ,दुसरे कलाकारों के कार्यक्रमों को सुनकर मिलता था,उसे ग्रहण व आत्मसात करने की कोशिश करता रहता । 

मैंने अपनी संगीत की शिक्षा टुकड़ो में कहाँ कहाँ से जुटाई ,कुछ का ज़िक्र पिछले पोस्ट में किया ही है,पर जो थोड़े अन्य रह गये हैं उन्हें भी लिखता चलूँ । कॉलेज तक का विवरण मैंने पीछे बताया था कि किस तरह ग़जलों से होता हुआ उस्ताद मेहँदी हसन खान साहिब व उस्ताद गुलाम अली खान साहिब की गज़लों से मुझे शास्त्रीय संगीत कि तरफ़ बढ़ने कि आवश्यकता महसूस हुई । पर ये शुरुआत हुई उदयपुर ( राजस्थान ) से । वहाँ बैंक में अधिकारी के पद पर कार्यरत था,पर सायंकाल के समय अशोक नगर में स्थित एक छोटे से संगीत विद्यालय से मैंने गायन में शास्त्रीय संगीत सीखना प्रारम्भ किया ।  यहाँ मेरी प्रथम गायन-गुरु श्रीमती बाशोभि भटनागर थीं जिनसे लगभग एक वर्ष मैंने सीखा । सन 1983 में हम अशोक नगर से हिरणमगरी सेक्टर 11 में शिफ्ट हो गए थे सो वहाँ से छोड़ना पड़ा पर यहाँ पास में ही मीरा कला संगीत विद्यालय था सो वहाँ से भी आगे सीखना चालू किया । यहाँ पर मेरे गुरु थे श्री राम नारायण ,जिनसे लगभग डेढ़ दो साल मैंने सीखा । इसके बाद बैंक कि व्यस्तताओं के चलते कुछ वर्ष का अंतराल हुआ ,हालाँकि मेरा स्वयं से रियाज़ हमेशा ही चालू रहा । पुनः 1989 के पास जब मेरी पोस्टिंग नई दिल्ली हुई ,तब मंडी हाउस स्थित श्री राम सेण्टर में मैंने पुनः गायन-शिक्षा लेनी प्रारम्भ करी । यहाँ लगभग मैंने दो वर्ष तक सिखा । 

बस इसके बाद कहीं अन्य से सिखने का अवसर ही नहीं मिला । लेकिन दिल में हमेशा ये बना ही रहा कि अभी तो सिखने कि ये यात्रा बहुत लम्बी है । इसी वजह से जब भातखंडे में काम करने का अवसर मिले तो मैंने फौरन स्वीकार किय। 

और हाँ इसके बारे में बातें तो बहुत सारी हैं पर उन्हें बीच बीच में लिखता रहूँगा । 

जो मुख्य बात आज यहाँ भातखंडे के बारे में लिखे जाने कि है,सो ये कि वहाँ सन 2009 में दो महीने मैंने एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकारी के तौर पर जो दायित्व निर्वाह किया था ,उसमें से एक महीने का पारिश्रमिक संगीत संस्था को मुझे देना था ,सो उसका चैक आज मुझे दे दिया गया ।

 हालाँकि ये पारिश्रमिक 4 साल के अंतराल के बाद प्राप्त हुआ पर मुझे गर्व इस बात का ज्यादा है कि मैं संगीत की इस महान संस्था ,जहाँ मेरी हैसियत संगीत के एक तुच्छ विद्यार्थी कि ही सी होगी,वहाँ मैं  वर्त्तमान में कार्यरत उच्च कोटि के संगीत व् नृत्य  के प्रसिद्ध गुरुजनों के साथ एडमिनिस्ट्रेटिव-अधिकारी बन कर सेवा का सौभाग्य प्राप्त कर पाया । 

शेष अगले पोस्ट तक !!

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

Bhatkhande Music Institute ( Deemed Univrsity ) Lucknow : My Linkage

संगीत की महान संस्था से मेरा जुड़ाव :

भातखण्डे संगीत संस्था ,लखनऊ ,उत्तर प्रदेश,भारत की एक अत्यंत प्रसिद्ध एवं सम्मानित हिंदुस्तानी संगीत सिखाने का विध्यालय 1926 से रहा जिसे वर्ष 2002 में यूनिवर्सिटी का दरजा प्राप्त हुआ । इस संस्था से बहुत से विश्वविख्यात कलाकार हुए हैं जिनका नाम संगीत के क्षेत्र में बहुत सम्मान से लिया जाता रहा है । आज इस विश्वविध्यालय से पढ़ कर निकले अनेक छात्र हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत से सम्बंधित विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं । 

अपने पिछले पोस्ट्स में मैंने अपनी संगीत यात्रा के उस समय का ज़िक्र किया जब मैंने स्वयं से ही गाने-बजाने का शौक़ छोटी सी उम्र में कर लिया था । बग़ैर किसी दिशादर्शन के व स्वयं के ढूंढे रास्तों से होता हुआ मैं संगीत का रियाज़ करता रहा । ख़ुद से ही दिल्ली के बाल-भवन से जुड़ा तो वहाँ बोंगो ,सितार सीखा पर कुछ समय ही । फ़िर कुछ वर्ष बाद दिल्ली में ही कनाट -सर्कस में स्थित गन्धर्व विद्यालय में लगभग दो तीन महीने हवाईयन गिटार बजाना सीखा । एकाध महिने ही मैंने गीत भजन गाने का मार्गदर्शन दिल्ली रेडियो के उस वक्त के "बाल-कार्यक्रम" के इंचार्ज के घर पर जाकर भी सीखा । फिर कई लम्बे अर्से तक में ख़ुद के रियाज़ व रेडियो ,टीवी या टेप-रिकॉर्डर पर बजने वाले संगीत को सुन सुन कर ज्ञान अर्जित करता रहा । तब मैं क्या ग़लत या क्या सही गाता-बजाता था उसका कोई आंकलन नहीं था क्यूंकि मैं स्वयं का प्रदर्शन भी बहुत कम ही करता था । हाँ ,ग्यारहवीं कक्षा तक स्कूल में होने वाले प्रार्थना के लिए मुझे ही चुना जाता था पर चूँकि उस समय स्कूलों में फ़िल्मी गाने नहीं चलते थे सो वो अवसर भी नहीं मिलता था कि हम औरों के सामने गीत वगेरह गा संके । 

१९७३ में जब मैंने सैंट-स्टीफन्स दिल्ली में दाखिला लिया तो वहाँ के माहौल से प्रभावित होकर अंग्रेजी गानों कि तरफ भी झुकाव बना ,पर सम्भवता 1974 में स्टीफन्स की तरफ़ से दिल्ली के दुसरे कालेजों में गज़ल प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने कि वज़ह से में धीरे -धीरे ग़ज़लों के क्षेत्र में प्रविष्ठ हो गया । हल्की-फ़ुल्की ग़ज़लों से शुरू हुई मेरी ये संगीत यात्रा मुझे स्वतः ही ग़ज़ल-सम्राट मेहँदी हसन खान साहिब व बाद में जनाब गुलाम अली के गायन कि तरफ़ ले चला । अब ये तो हर कोई जानता है कि इन दोनों उस्तादों की ग़ज़लें बिना शास्त्रीय संगीत के इल्म के होना कठिन है\। 

तो ग़ज़लों के इस इम्तहान ने मुझे ये प्रेरित किया कि मैं शास्त्रीय गाने की शिक्षा लूं ताकि उनकी ग़ज़लों को कुछ ढंग से गा सकूँ । 



क्रमशः। ....  

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

Back On Regular Timings !!

लो  फ़िर  से   मैं  शुरु  हुआ  : 6 दिसम्बर  2013 

पाठक इस शीर्षक से फौरन समझ जायेंगे कि ऐसा मैनें क्यूँकर लिखा जब उन्हें   पता चलेगा कि मेरा लैपटॉप पुनः ठीक से चालू हो चला है । इसके अतिरिक्त रिलाइन्स  का इंटरनेट डोंगल भी सही स्पीड पर काम करने लगा है । पिछले महिनों से शुरू हुई किसी अनजानी वज़ह या वायरस ने अंततः लैपटॉप की हार्डडिस्क को क्रैश कर दिया था और मुझे नई डिस्क खरीदने पर विवश होना पड़ा । 

अब उम्मीद है कि कुछ ठीक ठाक मामला चलता रहेगा । 

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

Vocal Music Restart

मेरा गायन रियाज़

पिछले कई महिनों से ना केवल मेरी संगीत साधना से गायकी अंग बिछुड़ सा गया था ,बल्कि उसके साथ हारमोनियम बजाना   भी बहुत दूर हो चला था। जबकि उससे पूर्व इन दोनों का साथ रोज़ाना कई घंटो का हुआ करता था । पर इस दरमियाँ मेरे संगीत का हमसफ़र मेरा स्पेनिश गिटार बना । पर पिछले दो दिनों से गायकी का रियाज़ व हारमोनियम की संगत का लुत्फ़ फिर से शरू हुआ है । 
कई महिनों के बाद भी हालाँकि मेरी उँगलियाँ हारमोनियम पर आराम से चल रहीं थीं ,पर लगता है कि गले से कुछ सुर दूर हो चलें हैं जो कि नितांत स्वाभाविक है । ऐसा लगता है कि उम्र भी गले पर डेरा डाले सुरों को उनके निश्चित स्थान से हिला चुकी है । तो क्या मेरी सुर-साधना की इतिश्री होने का वक्त शुरू हो चूका है ?

ये मैं आपको कुछ आगे के ब्लॉग्स में ही बता पाऊंगा । 
तो तब तक के लिए - शुभ दिन !

गुरुवार, 5 सितंबर 2013

कई दिनों बाद  फिर से 


पिछले  कई हफ़्तों से कोशिश चल रही थी के किसी तरह मेरे इस हिंदी ब्लॉग में चल रही फोंट्स की समस्या किसी तरह सुलझ जाये और पिछले शुरूआती पोस्ट्स में फोंट्स के साइज़ टाइप बैकग्राउंड रंग आदि में आई गड़बड़ी को दुरुस्त कर पाऊं । पर ये एक लम्बी प्रक्रिया है और समय काफ़ी लगता है । घंटों की मेहनत के बाद कुछ लाइन्स ही सही से लिख सका हूँ पर फ़िर भी ये कार्य संतोषजनक नहीं हुआ । समझ नहीं आता कि ब्लागस्पाट पर हिंदी में सीधे टाइप करके लिख सकने की सुविधा इंग्लिश की तरह क्यूँकर नहीं संभव है । पिछले कई पोस्ट्स अब भी फोंट्स प्रॉब्लम से ग्रसित रहने की वजह से हर किसी ब्राउज़र पर पढ़े नहीं जा सकेंगे इसका अफसोस है ।