भातखंडे संगीत संस्थान ( डीम्ड विश्वविद्यालय ): मेरे सम्बंध
मैंने अपने पिछले पोस्ट में इस संगीत विश्वविद्यालय का ज़िक्र करना शुरू किया था । हिंदुस्तानी संगीत के क्षेत्र में कार्यरत सभी कलाकार एवं अन्य संगीत प्रेमी इस से भली भांति परिचित हैं । मज़े की बात ये है कि जहाँ संगीत के अन्य विद्यालयों जिनका स्तर भातखंडे संगीत संसथान से बहुत कम का रहा होगा,वहाँ तो मैं एक विद्यार्थी के तौर पर जाता रहा था ,पर यहाँ पर मैं एक कार्यकर्ता के पद पर पहुंचा । हालाँकि यहाँ काम करते वक्त अपनी जिम्मेदारियों को निभाते निभाते ,मैं स्वयं को संगीत का विद्यार्थी भी मानता रहा । चूँकि पिछले संस्थाओं के मुकाबले यहाँ का स्तर काफ़ी उच्च कोटि का माना जाता है,अतः मैंने इस संस्था के किसी गुरुजन से अपनी शिक्षार्थी प्रवृत्ति को झिझक कि वज़ह से प्रकट नहीं होने दिया । बस थोड़ा बहुत संगीत ज्ञान ,दुसरे कलाकारों के कार्यक्रमों को सुनकर मिलता था,उसे ग्रहण व आत्मसात करने की कोशिश करता रहता ।
मैंने अपनी संगीत की शिक्षा टुकड़ो में कहाँ कहाँ से जुटाई ,कुछ का ज़िक्र पिछले पोस्ट में किया ही है,पर जो थोड़े अन्य रह गये हैं उन्हें भी लिखता चलूँ । कॉलेज तक का विवरण मैंने पीछे बताया था कि किस तरह ग़जलों से होता हुआ उस्ताद मेहँदी हसन खान साहिब व उस्ताद गुलाम अली खान साहिब की गज़लों से मुझे शास्त्रीय संगीत कि तरफ़ बढ़ने कि आवश्यकता महसूस हुई । पर ये शुरुआत हुई उदयपुर ( राजस्थान ) से । वहाँ बैंक में अधिकारी के पद पर कार्यरत था,पर सायंकाल के समय अशोक नगर में स्थित एक छोटे से संगीत विद्यालय से मैंने गायन में शास्त्रीय संगीत सीखना प्रारम्भ किया । यहाँ मेरी प्रथम गायन-गुरु श्रीमती बाशोभि भटनागर थीं जिनसे लगभग एक वर्ष मैंने सीखा । सन 1983 में हम अशोक नगर से हिरणमगरी सेक्टर 11 में शिफ्ट हो गए थे सो वहाँ से छोड़ना पड़ा पर यहाँ पास में ही मीरा कला संगीत विद्यालय था सो वहाँ से भी आगे सीखना चालू किया । यहाँ पर मेरे गुरु थे श्री राम नारायण ,जिनसे लगभग डेढ़ दो साल मैंने सीखा । इसके बाद बैंक कि व्यस्तताओं के चलते कुछ वर्ष का अंतराल हुआ ,हालाँकि मेरा स्वयं से रियाज़ हमेशा ही चालू रहा । पुनः 1989 के पास जब मेरी पोस्टिंग नई दिल्ली हुई ,तब मंडी हाउस स्थित श्री राम सेण्टर में मैंने पुनः गायन-शिक्षा लेनी प्रारम्भ करी । यहाँ लगभग मैंने दो वर्ष तक सिखा ।
बस इसके बाद कहीं अन्य से सिखने का अवसर ही नहीं मिला । लेकिन दिल में हमेशा ये बना ही रहा कि अभी तो सिखने कि ये यात्रा बहुत लम्बी है । इसी वजह से जब भातखंडे में काम करने का अवसर मिले तो मैंने फौरन स्वीकार किय।
और हाँ इसके बारे में बातें तो बहुत सारी हैं पर उन्हें बीच बीच में लिखता रहूँगा ।
जो मुख्य बात आज यहाँ भातखंडे के बारे में लिखे जाने कि है,सो ये कि वहाँ सन 2009 में दो महीने मैंने एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकारी के तौर पर जो दायित्व निर्वाह किया था ,उसमें से एक महीने का पारिश्रमिक संगीत संस्था को मुझे देना था ,सो उसका चैक आज मुझे दे दिया गया ।
हालाँकि ये पारिश्रमिक 4 साल के अंतराल के बाद प्राप्त हुआ पर मुझे गर्व इस बात का ज्यादा है कि मैं संगीत की इस महान संस्था ,जहाँ मेरी हैसियत संगीत के एक तुच्छ विद्यार्थी कि ही सी होगी,वहाँ मैं वर्त्तमान में कार्यरत उच्च कोटि के संगीत व् नृत्य के प्रसिद्ध गुरुजनों के साथ एडमिनिस्ट्रेटिव-अधिकारी बन कर सेवा का सौभाग्य प्राप्त कर पाया ।
शेष अगले पोस्ट तक !!